Friday, September 3, 2010

आ गयो माखनचोर ................

हे प्रभो कृष्ण कन्हैया , रासरचैया ,नाग नथैया,कंसारी - मुरारी ,जग तारक-उद्धारक,वासुदेव -नन्दलाल -यशोदानंदन , ब्रजबिहारी-गोवर्धनधारी  आप पधारे -भाग्य हमारे | आप ने हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी भादौं की अष्टमी को कारी अंधियारी रात में पुनः जन्म ले लिया भारतभूमि पर | आपका शत-शत वंदन है -अभिनन्दन है | हे सुदामा के मित्र दीनबंधु  : आज असंख्य सुदामा आपकी कृपादृष्टि के लिए व्याकुल हैं |मंहगाई ,शोषण और गरीबी ने इन्हें असहाय बना रखा है | मुष्टिक और चान्डूर इन्हें उठा -उठा कर पटक रहे हैं | इनकी जान के लाले पड़े हुए हैं | हे प्रभो : इन्हें अपने गले से लगा लो -इनकी जिन्दगी में भी खुशहाली ला दो | प्रभो : आप तो जगतपिता हैं , विश्व के पालनहार हैं , आपके संकेत मात्र से क्या कुछ नहीं हो सकता ?    एक बार अपनी भारत भूमि पर दृष्टि डालो भगवन : आज एक नहीं अनेकों कंस हैं जो अपने अत्याचारों से जनता को त्रस्त कर रहे हैं | छोटे कंस -बड़े कंस और उनके असंख्य मुष्टिक और  चान्डूर पूरे देश में दिल्ली से गाँव तक फैले हुए हैं | कौरवों की असंख्य सेना पांडवों पर भारी पड़ रही है | भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य नमक की कीमत अदा कर रहे हैं , द्रौपदी के चीरहरण में मौन बैठे हैं | धर्मराज द्यूतक्रीड़ा में अपना सब कुछ हार   बैठे हैं | अपने आपको आपका वंशज बताने वाले भी कंसलीला में शामिल हैं |    कुबलयापीड़ पगलाया हुआ है, उसका दांत उखाड़ने वाला भला आपके सिवा कौन हो सकता है | आपने पेय जल को विषाक्त कर देने वाले कालिया नाग को नाथा था | आज ऐसे जाने कितने नाग खुली सड़कों पर नर्तन कर रहे हैं | आपने दूध, दही,घी को ब्रज से मथुरा  जाने से रोकने के लिए दूध -दही की मटकियाँ फोड़ी थीं | अपने साथी ग्वाल बालों को स्वस्थ रखने के लिए घर-घर माखनचोरी की | नारियां कभी मर्यादा की सीमा को लाँघ कर नग्नता तक न पहुँच जाएँ ,इसीलिए आपने चीरहरण का खेल किया |नए गौरवपूर्ण भारत निर्माण के निमित्त महाभारत का युद्ध रचाया | अभिमानी देवराज इन्द्र का मानमर्दन करते हुए आपने गोवर्धन पर्वत की पूजा करवाकर दिखला दिया कि जलवर्षा पहाड़ों और जंगलों को बचाने एवं उन्हें सम्मान देने पर ही होगी | बता दिया कि जनता के लिए दम्भी देवता से कहीं अधिक पर्वत और वन पूजनीय हैं जिनसे  अनेकानेक  जड़ी बूटियाँ ,लकड़ियाँ ,वर्षा और हरियाली मिलती है | आपका एक-एक कदम मानवता का आदर्श बन गया
              पर हे बनवारी : आज सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है | अपनी वंशी की  मधुर धुन पर जड़ -चेतन को विमोहित कर नचाने वाले हे राधे रमण :  विश्व को गीत-संगीत का ज्ञान करानेवाले  भी तो आप ही हैं | फिर कैसा विलम्ब प्रभो ! अपने भारत को एक बार फिर उसी शिखर तक पंहुचा दो जहाँ पहले कभी था |
             पुनः-पुनः कोटि-कोटि वंदन है -अभिनन्दन है आपका! हे नयनाभिराम ! शत-शत प्रणाम !
                 
       

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